Pen of Tabish

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लेखनी प्रतियोगिता -24-Feb-2022 ज़िन्दगी

क़तरा-क़तरा पिघल रही हैं ज़िन्दगी
रेत की तरफ फिसल रही है ज़िन्दगी

क्या ही बताएं ख़ैरियत और क्या कैफ़ियत
मुख़्तसर समझिये कि बस चल रही है ज़िन्दगी

ख्वाहिशें शिकस्ता हैं रोज़-मर्रा ज़रूरतों के आगे
मौत से पहले ही रोज़ाना मर रही है जिंदगीं

अक़्ल का बादाम से कोई वास्ता है ही नहीं
जब लगे ठोकर समझ लो सँवर रही है ज़िंदगी

ग़मों की स्याह रात का सवेरा जल्द होगा
बस इसी उम्मीद में गुज़र रही है ज़िन्दगी

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6 Comments

Karan

05-Mar-2022 11:48 PM

Nice

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Inayat

05-Mar-2022 01:46 AM

👌👌👌

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Arshi khan

03-Mar-2022 06:45 PM

Nice

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